सोमवार, 22 जनवरी 2018

पर्याप्त दूध और कसरत से बच्चों में बढ़ता है विटामिन डी का स्तर

पर्याप्त दूध और कसरत से बच्चों में बढ़ता है विटामिन डी का स्तर
पर्याप्त दूध और कसरत से बच्चों में बढ़ता है विटामिन डी का स्तर


लंदन: विटामिन डी की खुराक के साथ दूध की पर्याप्त मात्रा और शारीरिक गतिविधियां जैसे कसरत इत्यादि से बच्चों में विटामिन डी की मात्रा बढ़ती है। पूर्वी फिनलैंड विश्वविद्यालय में किए गए अध्ययन से यह नई जानकारी सामने आई है। 

शोधकर्ताओं के मुताबिक हड्डियों की मजबूती के लिए विटामिन डी का उच्च स्तर होना बहुत जरूरी है। साथ ही यह बहुत सारे पुराने रोगों का जोखिम भी कम करता है। 

यह अध्ययन ब्रिटिश जर्नल ऑफ न्यूट्रिशन में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन के दौरान जिन बच्चों के रक्त के नमूने गर्मियों के दिनों में ली गई, उनमें विटामिन डी का स्तर सबसे अधिक पाया गया। जबकि सर्दियों के दौरान इसका स्तर कम रहा, क्योंकि इस क्षेत्र में सर्दियों में धूप नहीं निकलती है।

इस शोध में 80 फीसदी बच्चों में विटामिन डी का स्तर कम मिला। विटामिन डी के स्तर को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों ने रोजाना ढाई-तीन गिलास दूध पीने की सिफारिश की है। साथ ही हफ्ते में दो से तीन बार मछली जरूर खाना चाहिए और वनस्पति तेल जरूर खाना चाहिए, क्योंकि इनमें विटामिन डी पाई जाती है। इसके अलावा बच्चों को शारीरिक गतिविधियों में और खेलकूद में हिस्सा लेने के लिए बढ़ावा देना चाहिए।

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

इस लकड़ी के बर्तन में पानी पीकर पाएं अर्थराइटिस और डायबिटीस से छुटकारा

इस लकड़ी के बर्तन में पानी पीकर पाएं अर्थराइटिस और डायबिटीस से छुटकारा
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विजयसार (वानस्‍पतिक नाम: Pterocarpus marsupium) मध्य ऊँचाई से लेकर अधिक ऊँचाई वाला वृक्ष है। यह एक पर्णपाती वृक्ष है जिसकी ऊँचाई 30 मीटर तक हो सकती है। यह भारत, नेपाल और श्रीलंका में पाया जाता है। भारत में यह पश्चिमी घाट और मध्य भारत के वनों में पैदा होता है। विजयसार की लकड़ी आपको किसी भी आयुर्वेदिक औषधि की दूकान में मिल जाएगी। इस लकड़ी का रंग हल्‍का या फिर गहरा लाल रंग का होता है। आयुर्वेद विशेषज्ञों की मानें तो विजयसार की लकड़ी औषधीय गुणों का खजाना है। यह मधुमेह, धातुरोग और गठिया जैसे रोगों के लिए रामबाण है। जिन पहाड़ी क्षेत्रों में ये लकड़ी पाई जाती है वहां इस लकड़ी का ग्‍लास मिलता है, जिसमें पानी पीने से ही कर्इ तरह के रोग दूर हो जाते हैं।

इन रोगों में है लाभदायक

- जोडों के दर्द में लाभ देता है।
- अम्ल-पित्त में भी लाभ देता है।
- प्रमेह (धातु रोग) में भी अचूक है।
- हाथ-पैरों के कंपन्‍न में भी बहुत लाभदायक है।
- मधुमेह को नियन्त्रित करने में सहायता करता है।
- उच्च रक्त-चाप को नियन्त्रित करने में सहायता करता है।
- इसके नियमित सेवन से जोड़ों की कड़-कड़ बंद होती है अस्थियाँ मजबूत होती है।
- शरीर में बधी हुई चर्बी को कम करके, वजन और मोटापे को भी कम करने में सहायक है।
- त्वचा के कई रोगों, जैसे खाज-खुजली, बार-2 फोडे-फिंसी होते हों, उनमें भी लाभ देता है।

विजयसार के सेवन का तरीका

विजयसार की सूखी लकड़ी लेकर उनके छोटे-छोटे टुकड़े कर दें। फिर आप एक मिट्टी का बर्तन ले और इस लकड़ी के छोटे छोटे टुकड़े लगभग पच्चीस ग्राम रात को एक गिलास पानी में डाल दे। सुबह तक पानी का रंग लाल गहरा हो जाएगा ये पानी आप खाली पेट छानकर पी लें और दुबारा आप उसी लकड़ी को उतने ही पानी में डाल दे शाम को इस पानी को उबाल कर छान ले। अगर आप इसका सेवन करना चाहते हैं तो किसी आयुर्वेद विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। अगर आप इसके साथ कोई एलोपैथी दवा ले रहे हैं तो सलाह लेना बहुत जरूरी है। मार्केट में मिलने वाले विजसार की लकड़ी के ग्‍लास में भी पानी रखकर पी सकते हैं।

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

‘शिव की महान रात्रि’, महाशिवरात्रि का त्यौहार आध्यात्मिक उत्सवों की सूची में सबसे महत्वपूर्ण 

‘शिव की महान रात्रि’, महाशिवरात्रि का त्यौहार भारत के आध्यात्मिक उत्सवों की सूची में सबसे महत्वपूर्ण है। सद्गुरु बता रहे हैं कि यह रात इतनी महत्वपूर्ण क्यों है और हम इसका लाभ कैसे उठा सकते हैं।
सद्‌गुरु: भारतीय संस्कृति में एक समय ऐसा था, जब एक साल में 365 त्यौहार होते थे। दूसरे शब्दों में, उन्हें बस वर्ष के हर दिन उत्सव मनाने का एक बहाना चाहिए होता था। इन 365 त्यौहारों को अलग-अलग कारणों और जीवन के अलग-अलग उद्देश्यों से जोड़ा गया। ऐतिहासिक घटनाओं और जीतों का जश्न मनाया जाता था। जीवन के खास मौकों जैसे फसल कटाई, फसल बोने और पकने के समय भी त्यौहार मनाए जाते थे। हर ‍मौके के लिए एक त्यौहार होता था। मगर महाशिवरात्रि का महत्व बिल्कुल अलग है।
सप्तऋषियों को योग विज्ञान में दीक्षा

हर चंद्र माह के चौदहवें दिन या अमावस्या से एक दिन पहले शिवरात्रि होती है। एक कैलेंडर वर्ष में आने वाली बारह शिवरात्रियों में से फरवरी-मार्च में आने वाली महाशिवरात्रि आध्यात्मिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण है। इस रात धरती के उत्तरी गोलार्ध की स्थिति ऐसी होती है कि इंसान के शरीर में ऊर्जा कुदरती रूप से ऊपर की ओर बढ़ती है। इस दिन प्रकृति इंसान को अपने आध्यात्मिक चरम पर पहुंचने के लिए प्रेरित करती है। इसका लाभ उठाने के लिए इस परंपरा में हमने एक खास त्यौहार बनाया जो रात भर चलता है। ऊर्जा के इस प्राकृतिक चढ़ाव में मदद करने के लिए रात भर चलने वाले इस त्यौहार का एक मूलभूत तत्व यह पक्का करना है कि आप रीढ़ को सीधा रखते हुए रात भर जागें।
आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले लोगों के लिए महाशिवरात्रि का त्यौहार बहुत महत्वपूर्ण है। यह गृहस्थ जीवन बिताने वाले और दुनिया में महत्वाकांक्षा रखने वाले लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है। गृहस्थ जीवन में रहने वाले लोग महाशिवरात्रि को शिव की विवाह वर्षगांठ के रूप में मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाएं रखने वाले लोग इस दिन को शिव की दुश्मनों पर विजय के रूप में देखते हैं।
मगर योगियों और संन्यासियों के लिए यह वह दिन है, जब वह कैलाश पर्वत के साथ एकाकार हो गए थे। वह एक पर्वत की तरह बिल्कुल स्थिर और अचल हो गए थे। योगिक परंपरा में शिव को ईश्वर के रूप में नहीं पूजा जाता है, बल्कि उन्हें प्रथम गुरु, आदिगुरु माना जाता है, जो ज्ञान के जन्मदाता थे। कई सदियों तक ध्यान करने के बाद एक दिन वह पूरी तरह स्थिर हो गए। वह दिन महाशिवरात्रि है। उनके भीतर की सारी हलचल रुक गई और वह पूरी तरह स्थिर हो गए। इसलिए संन्यासी महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात के रूप में देखते हैं।
किंवदंतियों को छोड़ दें तो योगिक परंपरा में इस दिन और रात को इतना महत्व इसलिए दिया जाता है क्योंकि यह आध्यात्मिक साधक के लिए जबर्दस्त संभावनाएं प्रस्तुत करते हैं। आधुनिक विज्ञान कई चरणों से गुजरने के बाद आज उस बिंदु पर पहुंच गया है, जहां वह प्रमाणित करता है कि हर वह चीज, जिसे आप जीवन के रूप में जानते हैं, पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं, जिसे आप ब्रह्मांड और आकाशगंगाओं के रूप में जानते हैं – वह सिर्फ एक ही ऊर्जा है जो लाखों रूपों में खुद को अभिव्यक्त करती है।
यह वैज्ञानिक तथ्य हर योगी के लिए एक जीवंत अनुभव है। ‘योगी’ शब्द का मतलब है वह व्यक्ति जिसने अस्तित्व के ऐक्य को पहचान लिया है। महाशिवरात्रि की रात व्यक्ति को इसका अनुभव करने का एक अवसर देती है। योग से मेरा मतलब किसी खास अभ्यास या प्रणाली से नहीं है। असीमित को जानने की सारी इच्छा, अस्तित्व में एकात्मकता को जानने की सारी चाहत ही योग है। महाशिवरात्रि की रात आपको इसका अनुभव करने का अवसर भेंट करती है।

गुरुवार, 17 नवंबर 2016

बवासीर जैसी पीड़ादायक समस्या का आयुर्वेदिक इलाज,एक बार पोस्ट को ज़रूर पढ़ें और शेयर करना ना भूले

बवासीर जैसी पीड़ादायक समस्या का आयुर्वेदिक इलाज,एक बार पोस्ट को ज़रूर पढ़ें और शेयर करना ना भूले

आज के समय में बवासीर की बीमारी अधिक लोगों में पाई जाती है । यह रोग ज्यादा भयंकर नही होता परन्तु अधिक कष्टदायक होता है । बवासीर का रोग होने पर मनुष्य अधिक चिन्तित होने लगता है । जिनसे उनका स्वास्थ्य और अधिक अस्वस्थ होने लगता है । इसी कारण वे अपना इलाज सही रूप से नही कर पाते है । लेकिन आयुर्वेद ने इस बीमारी को जड़ से ख़त्म करने के लिए कुछ घरेलू उपाय बताये है । यह उपाए हर व्यक्ति के लिए बिल्कुल सरल और सस्ता है । और आसानी से भी किया जा सकता है । 
उपचार :- 
बवासीर की बीमारी में मूली बहुत ही लाभदायक होती है । मूली का प्रयोग करके बवासीर की बीमारी को ठीक किया जा सकता है । इस रोग में अगर व्यक्ति का खून गिरता है तो रोगी को कच्ची मूली में थोड़ा सा नींबू का रस निचोड़कर उसमे काला नमक और काली मिर्च लगाकर रोगी को १० दिन तक इसका सेवन करने से बवासीर की बीमारी ठीक हो जाती है |या फिर और जल्दी लाभ पाने के लिए एक कप मूली का रस निकालकर इसमें कम से कम दो चम्मच देसी घी डालकर मिलाये । और रोजाना बासी मुँह इसका सेवन करने से किसी भी प्रकार का बवासीर रोग १० ही दिनों में ठीक हो जायेगा ।
बवासीर का लौकी से उपचार :-
कुछ लौकी के पत्तों को लेकर इन पत्तों को किसी वस्तु से पीसकर बारीक़ करके मलहम के समान तैयार कर ले । और इस मलहम को रोग वाले स्थान पर रोजाना लगाने से बवासीर का रोग ख़त्म हो जाता है ।
तिल से बवासीर का उपचार :-
बवासीर के रोग को ठीक करने के लिए तिल का भी बहुत उपयोग किया जाता है । ५० ग्राम की मात्रा में काले तिल को रोजाना सुबह और शाम खाने के बाद २५० ग्राम दही अवश्य खाए । इस क्रिया को लगातार दो सप्ताह तक करने 
से बवासीर की बीमारी जल्द ही ठीक हो जाती है ।  
चने के द्वारा बवासीर का उपचार :- 
इस रोग को ठीक करने के लिए चना भी अधिक फायदेमंद होता है । १०० की मात्रा में चने को भूनकर या सेकर एक दिन में कम से कम तीन बार सेवन करने से बवासीर का रोग तो ठीक होता ही है । साथ ही खूनी बवासीर भी ठीक हो जाता है । यह उपचार बिल्कुल सरल और सस्ता है तथा अपने घर में बड़ी आसानी किया जा सकता है ।
ईसबगोल से बवासीर का इलाज :- 
ईसबगोल एक प्रकार की भूसी का नाम है जो आम दुकानों में बड़ी ही आसानी से मिल जाता है । इस भूसी का उपयोग एक गिलास गर्म दूध में १० ग्राम भूसी मिलाकर एक दिन में दो से तीन बार पीने से बवासीर का रोग जड़ से ख़त्म हो जाता है ।
पपीते से उपचार :- 
पपीता बीमार व्यक्ति के लिए बहुत ही लाभदायक होता है । इसलिए इसका उपयोग इस रोग को ठीक करने के लिए भी जाता है । कम से कम २५० ग्राम पपीते को ख़रीदे और इसे छीलकर इसके हिस्से बनाकर इसमें पीसी हुई काली मिर्च , काला नमक और नींबू का रस निचोड़कर खाने से बवासीर का रोग ठीक हो जाता है । तथा पपीते का उपयोग करने से शरीर में हुए और दूसरे रोग भी ठीक हो जाते है ।
नोट :- बवासीर का रोग होने पर रोगी को ठन्डे पदार्थो का सेवन अधिक से अधिक करना चाहिए । और गर्म पदाथों का उपयोग कम से कम करना चाहिए ।

चिकनगुनिया से जुडी महत्त्वपूर्ण जानकारी इसे शेयर कर आगे भी बढ़ने दे, लोगो का भला होगा

चिकनगुनिया से जुडी महत्त्वपूर्ण जानकारी इसे शेयर कर आगे भी बढ़ने दे, लोगो का भला होगा



चिकनगुनिया बुखार क्या है

Chikungunya Fever (चिकनगुनिया बुखार) भी मच्छरों के संक्रमण से फैला हुआ एक तरह का बुखार है –डेंगू की तरह इसका भी प्रकोप बड़ी तेजी से देखनो को मिल रहा है । इस बीमारी की पूरी जानकारी न होने के कारण लोगो में इसका डर काफी ज्यादा देखनो को मिल रहा है. लेकिन हम, यह स्पष्ट कर देना चाहते है की यह बुखार डेंगू बुखार इतना प्रभावशाली नहीं होता, इसमें रोगी के जान जाने की खतरा न के बराबर ही होती है । लेकिन पहले से अस्वस्थ , बुजुर्गों और बच्‍चों के जीवन के लिए यह खतरनाक साबित हो सकता है । डॉक्टर की सलाह, समय पर रोकथाम और उचित देखरेख से इसका इलाज पूर्णतयः सम्भव है.

चिकनगुनिया बुखार का इतिहास

जानकारों का मानना है की, इस रोग को सबसे पहले, तंज़ानिया Tanzania, मारकोंड प्लेटू Markonde Plateau, मोजाम्बिक Mozambique और टनगानिका Tanganyika पर 1952 में फैलते देखा गया था। Markonde इलाके में स्वाहिली भाषा बोली जाती है जिसमें चिकनगुनिया का मतलब होता है- “अकड़े हुए आदमी की बीमारी।” एक खास प्रजाति का मच्छर ही चिकनगुनिया फैलाता है जिसे एडिस एजेप्टी कहा जाता है, इस मच्छर की पहचान एक जर्मन डॉक्टर जोहान विल्हेम ने 1818 में की थी । एडिस एजिप्टी’ ग्रीक नाम है जिसका मतलब होता है ‘बुरा मच्छर’ । इस रोग को पहली बार मेरोन रोबिंसन तथा लुम्स्डेन ने वर्णित किया था। यह पहली बार तंजानिया मे फैला था।

चिकनगुनिया बुखार के कारण

Chikungunya Fever, चिकनगुनिया वायरस संक्रमित मच्छरों के काटने से होता है । चिकनगुनिया वायरस एक अर्बोविषाणु है, जिसे अल्फाविषाणु परिवार का माना जाता है। इसका संवाहक एडीज एजिप्टी मच्छर है जो की डेंगू बुखार और येलो फीवर का भी संवाहक होता है, इस तरह के मच्छर बरसाती पानी जमा होने से तेजी से पनपते हैं।

चिकनगुनिया बुखार के लक्षण

साधारणतः चिकनगुनिया बुखार के लक्षण संक्रमण होने के 2 से 7 तक ही रहते हैं लेकिन साधारणतः रोगी की दशा और उम्र पर भी यह निर्भर करता है । चिकनगुनिया बुखार के लक्षण एक से अधिक भी हो सकते है । सामान्यत: चिकनगुनिया बुखार के लक्षण कुछ ऐसे होते हैं —

➥ रोगी को अचानक बिना खांसी व जुकाम के तथा ठंड व कपकंपी के साथ अचानक तेज़ बुख़ार चढ़ना

➥ जोड़ों में तेज दर्द के साथ सूजन होना

➥ तेज बुखार (104-105 F) जो की 2-7 दिन तक लगातार रहना

➥ रोगी के सिर के अगले हिस्से , आंख के पिछले भाग में रहना , कमर, मांसपेशियों तथा जोड़ों में दर्द होना।

➥ मिचली nausea, उल्टी vomiting आना या महसूस होना

➥ शरीर पर लाल-गुलाबी चकत्ते red rashes होना

➥ आँखों लाल रहना ,आँखों में दर्द रहना

➥ हमेशा थका-थका और कमजोरी महसूश करना

➥ भूख न लगना, खाने की इच्छा में कमी, मुँह का स्वाद ख़राब होना, पेट ख़राब हो जाना,

➥ नींद न आना या नींद में कमी

चिकनगुनिया बुखार से जुड़े जाँच :

चिकनगुनिया बुखार से जुड़े जाँचो में आरटी-पीसीआर, रक्त सीरम की जाँच और वायरस पृथक्करण मुख्य है जिससे रोगी में चिकनगुनिया बुखार होने का पता लगया जा सकता है ।Virus Isolation : संक्रमण के शुरुआत के दिनों में रक्त से चिकनगुनिया के वायरस को अलग कर परिक्षण करने के लिए यह जांच की जाती हैं।Enzyme-Linked Immunosorbent assays (ELISA) Test : इससे चिकनगुनिया के antibodies रक्त में है या नहीं यह जांच की जाती हैं।Complete Blood Count (CBC) Test : इस रक्त परिक्षण में सफेद रक्त कण (White Blood Cells) और Platelet Count में कमी आने पर चिकनगुनिया होने की आशंका का निर्धारण किया जाता है ।Reverse Transcriptase – Polymerase Chain Reaction (RT-PCR) Test : इससे चिकनगुनिया के Gene की जांच की जाती हैं ।

Chikungunya Precautions and Prevention in Hindi | चिकनगुनिया से बचाव के तरीके
चूँकि चिकनगुनिया बुखार, मच्छरों के काटने से होता है । सम्भवतः जितना हो सके मच्छरों से बचा जाए

➥ घर में सोते समय मच्छर दानी का प्रयोग करें ।
➥ घर में मच्छर भगाने वाले कॉयल , लिक्विड,इलेक्ट्रॉनिक बैट आदि का प्रयोग करें।
➥ बाहर जाने से पहले मोस्कीटो रेप्लेंट क्रीम का प्रयोग करें ।
➥ आपके घर के आसपास जलजमाव वाली जगह के सफाई का खासा ख्याल रखे । जलजमाव बिल्कुल भी न होने दे
➥ घर के दरवाजे , खिड़कियों और रोशनदानों पर जालियां लगाकर रखे ।
➥ टायर, डब्बे ,कूलर, A/C, पशुओ के लिए रखे पानी, गमले में रुके पानी को बदलते रहे और 2-3 दिन में साफ़ करते रहे
➥ खाली बर्तनों को खुले में न रखे और उसे ढक कर रखे ।
➥ अगर आस-पास में किसी को यह संक्रमण है तो विशेष सावधानी बरते।
➥ अगर 2-3 दिन से अधिक समय तक बुखार हो तो तुरन्त चिकत्सक से मिले और रक्तजाच जरूर करा लें ।उपरोक्त लक्षण दिखने पर चिकित्सक के पास जाकर चिकनगुनिया बुखार के लक्षण का संदेह व्यक्त करे । डॉक्टर की सलाह, समय पर रोकथाम और उचित देखरेख इस रोग से संक्रमित व्यक्ति के लिए बहुत ही आवश्यक है.

➥बकरी का दूध :- डेंगू बुखार के साथ ही साथ चिकनगुनिया बुखार के इलाज के लिए भी बकरी का दूध बहुत ही उपयोगी है क्योंकि यह सीधे प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है, ऊर्जा देता है, शरीर में जरूरी तरल की आपूर्ति करता है और आवश्यक पोषक तत्वों की कमी नहीं होने देता।
➥पीपते के पत्ते :- पपीते की पत्तियां न सिर्फ डेंगू बल्कि चिकुनगुनिया में भी उतनी ही प्रभावी है। उपचार के लिए पपीते की पत्तियों से डंठल को अलग करें और केवल पत्ती को पीसकर उसका जूस निकाल लें। दो चम्मच जूस दिन में तीन बार लें । यह बॉडी से टॉक्सिन बाहर निकालने तथा प्लेटलेट्स की गिनती बढ़ाने में मदद करता है ।
➥तुलसी के पत्ते और काली मिर्च :- 4 – 5 तुलसी के पत्ते, 25 ग्राम ताजी गिलोय का तना लेकर कूट लें एवं 2 – 3 काली मिर्च पीसकर 1 लीटर पानी में गर्म कर ले । जब पानी की मात्रा 250 M.L. तक रह जाए , तो उतार ले और यह काढ़ा रोगी को थोड़े समय के अंतराल पे देते रहे,यह ड्रिंक आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाती है और एंटी-बैक्टीरियल तत्व के रूप में कार्य करती है।
➥तुलसी अजवायन और नीम के पत्तियां – अजवायन, किशमिश, तुलसी और नीम की सूखी पत्तियां लेकर एक गिलास पानी में उबाल लें। इस पेय को बिना छानें दिन में तीन बार पीना चाहिए। तुलसी का काढ़ा और उसकी पत्तियों को उबालकर पीने से राहत मिलती है।
➥मेथी के पत्ते :- इसकी पत्तियों को पानी में भिगोकर, छानकर पानी को पीया जा सकता है। इसके अलावा, मेथी पाउडर को भी पानी में मिलाकर पी सकते हैं। यह पत्तियां बुखार कम करने में सहायता करती है ।
➥ एप्सम साल्ट (Epsom salt) :- एप्सम साल्ट की कुछ मात्रा गरम पानी में डालकर उस पानी से स्नान करे । इस पानी में नीम की पत्तियां भी मिलाएं। ऐसा करने से भी दर्द से राहत मिलेगी और तापमान नियंत्रित होगा।
➥गिलोय :- गिलोय के तनों को तुलसी के पत्ते के साथ उबालकर डेंगू पीड़ित व्यक्ति को देना चाहिए । यह मेटाबॉलिक रेट बढ़ाने, इम्युनिटी और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत रखने और बॉडी को इंफेक्शन से बचाने में मदद करती है।
➥हल्दी :- हल्दी में मेटाबालिज्म बढ़ाने का गुण होता है, यह दर्द और घाव को जल्दी ठीक करने में भी उपयोगी होता है । हल्दी का सेवन दूध में मिलाकर किया जा सकता है।
➥ लहसुन और सजवायन की फली (Garlic and drum stick):- किसी भी तेल में लहसुन और सजवायन की फली मिलाकर तेल गरम करें और इस तेल से रोगी की मालिश करें। इसके सेवन से दर्द में काफी आराम मिलता है
➥ फलों का रस, दूधश् दही, लाइट जल्दी पचने वाली चीजें सेवन करें । विटामिन-सी युक्त, आयरन, इलेक्टक्रेलाइट, ओआररस लेते रहें जो कि शरीर को बुखार से थ्रोमबोसाटोपनिया होने से बचाने में सहायक है
➥ कच्चा गाजर खाना भी काफी लाभदायक होता है । यह रोगी की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है साथ ही जोड़ों के दर्द से भी राहत देती है।
➥ चिकुनगुनिया बुखार के लिए गिलोय, पपीता पत्ते, एलोवेरा/मुसब्बर वेरा का रस और बकरी का दूध देना लाभप्रद होता है।** लेकिन इन सभी घरेलू औषधियों का प्रयोग किसी योग्य चिकित्सक के देखरेख में ही किया जाना चाहिए।
चिकनगुनिया का आयुर्वेदिक इलाज :नीचे दी गई दवाओं को 2 सप्ताह तक, गर्म पानी के साथ लें। सटीक दवा शरीर में देखे जा रहे लक्षणों, दवा के प्रभाव पर तय की जाती है।संजीवनी वटी (100 mg) दिन में दो बार।सुदर्शन घन वटी 500mg 1 गोली दिन में तीन बार।अमृतारिष्ट 15-30 ml दिन में दो बार।अथवासंजीवनी वटी (100 mg) दिन में दो बार।त्रयोदशांग गुग्गुलु 500mg दिन में तीन बार।महारस्नादी क्वाथ 45 ml दिन में दो बार।बुखार और दर्द: दशमूल काढ़ा का सेवन करें।बुखार के लिए: पटोलादि क्वाथ अथवा पञ्च तिक्त क्वाथ अथवा सुदर्शन चूर्ण का सेवन करें।बुखार जिसमें कफ की अधिकता हो: निम्बादी क्वाथआमवात, गठिया, आर्थराइटिस जैसी स्थिति: रस्नादी क्वाथ अथवा महारास्नादि क्वाथ अथवा महा योगराज गुग्गुलु अथवा योगराज गुग्गुलु अथवा रसना सप्तक क्वाथ का सेवन करें।पुराने बुखार में: आरोग्यवर्धिनी गुटिका का सेवन करें।त्वचा पर दाने/रैशेस: गुडूच्यादी क्वाथ अथवा बिल्वादी गुटिका अथवा हरिद्रा खण्ड का सेवन करें।चिकनगुनिया में गुग्गुलु का सेवनगुग्गुलु क्योंकि शरीर में सूजन को दूर करते हैं इसलिए चिकनगुनिया में विशेष रूप से उपयोगी है। जब बुखार ठीक भी हो जाता है तो श्री में जोड़ों की दिकात रह जाती है। ऐसे में निम्न से किसी एक गुग्गुलु का सेवन शरीर में दर्द सूजन में राहत देता है:अमृता गुग्गुलु Amrita Guggulu (2 tablets twice daily)योगराज गुग्गुलु Yogaraj guggulu (2 tablets thrice daily)महायोगराज गुग्गुलु Maha yogaraja Guggulu (2 tablets twice daily)सिंहनाद गुग्गुलु Simhanada Guggulu (2 tablets thrice daily)गोक्षुरादी गुग्गुलु Gokshuradi Guggulu (2 tablets twice daily)कैशोर गुग्गुलु Kaishore Guggulu (2 tablets twice daily)त्रयोदाशांग गुग्गुलु Trayodashanga Guggulu (2 tablets thrice daily)सिद्ध की एक हर्बल दवा Nilavembu kudineer chooranam भी चिकनगुनिया में लाभकारी है। इसमें बुखार दूर करने के antipyretic, सूजन नष्ट करने के anti-inflammatory और दर्द निवारक analgesic गुण है।क्लोरोक्विन फास्फेट (250 मिलीग्राम) Chloroquine Phosphate (250 mg) दिन में एक बार दैनिक देने से से चिकनगुनिया से पीड़ित लोगों में लाभ देखा गया है।**
चेतावनी –

➥ अगर किसी को बुखार हो रखा हो तो, (खासकर डेंगू के सीजन में) तो एस्प्रिन (Asprin) बिल्कुल न लें। यह मार्केट में इकोस्प्रिन (Ecosprin) नाम से मुख्यतः मिलता है ।
➥ ब्रूफेन (Brufen), कॉम्बिफ्लेम (combiflame) आदि एनॉलजेसिक से भी परहेज करें क्योंकि अगर डेंगू है तो इन दवाओं से प्लेटलेट्स कम हो सकती हैं और शरीर से ब्लीडिंग शुरू हो सकती है।➥ किसी भी तरह के बुखार में सबसे सेफ पैरासेटामॉल (Paracetamol) लेना है।
➥ किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत चिकित्सा शुरू करने से पहले चिकित्सक/वैद्य से परामर्श करना आवश्यक है।

पायरिया का घरेलु उपचार मात्र तीन दिन में , पोस्ट को शेयर करना ना भूले

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पायरिया की बीमारी का उपचार 
पायरिया एक ऐसी बीमारी जो हमारे दाँतों में हो जाती है । पायरिया होने पर मनुष्य के दाँतों में अधिक दर्द होने लगता है । और इंसान इस दर्द से परेशान होकर अपने दांत को निकलवाने लगते है । दाँत निकलवाने से इंसान समय से पहले ही बूढ़ा सा दिखाई देने लगता है । ये पायरिया कि बीमारी इंसान की लापरवाही के कारण हो जाती है । दाँतों में पायरिया होने का मुख्य कारण यह है कि दाँतों का समय पर साफ न करना और किसी वस्तु का सेवन करने के बाद अपने दाँतो को साफ न करना । दाँतों को साफ न करने से दाँतों में काई उत्त्पन हो जाती है । ये काई एक पायरिया जैसी बीमारी का रूप ले लेते है । इस पायरिया जैसी को बीमारी को रोकने के लिए या इस बीमारी को ठीक करने के लिए हम इसका इलाज घर में ही कर सकते है |
पायरिया की बीमारी का उपचार :-
1.
 पायरिया को ठीक करने के लिए टमाटर और गाजर का रस निकालकर पीने से दाँतों की बीमारी ठीक हो जाती है । तथा सरसों की २ या ४ बून्द लेकर इसमें बारीक़ नमक एक चुटकी डालकर इसका मंजन करने से दाँत का दर्द ठीक हो जाता है ।
2. दाँत के मसूड़े में से खून निकलने पर इसको रोकने के लिए थोड़ी सी फिटकरी भूनकर इसको बारीक़ पीस कर इसमें हल्दी मिलाकर इसका चूर्ण तैयार कर ले । इस चूर्ण को रोजाना मंजन के रूप में करने से मसूड़े का खून आना बंद हो जायेगा| और दाँत भी साफ हो जायेंगे ।
3. दाँतों को अधिक साफ करने के लिए तेजपात का चूर्ण तैयार करके इस चूर्ण को सप्ताह में एक या दो बार करने से दाँत बिल्कुल दूध के भाती सफेद या चमकते हुए दिखाई देंगे |
4. पायरिया को दूर करने के लिए तुलसी का उपयोग बहुत ही उपयोगी होती है । तुलसी के पत्तों को धुप में सुखाकर बारीक़ पीसकर इसका चूर्ण तैयार कर ले । इस चूर्ण में समान मात्रा में सरसों का तेल डालकर लेप की तरह तैयार कर ले । इस लेप को अपने हाथों की ऊँगली या ब्रश पर लगाकर करने से पायरिया की शिकायत ख़त्म हो जाती है । तथा मुँह से बदबू भी दूर हो जाती है | जब मनुष्य के दाँत हिलने लगे तो मनुष्य को अपने दाँत निकलवाने नही चाहिए । इसका उपचार आम के पत्तों से किया जा सकता है । ऐसे मनुष्य को आम के पत्तों को रोजाना चबाकर कुछ समय बाद थूक देना चाहिए । ऐसा करने से कुछ दिन बाद मनुष्य के दाँत हिलना बंद हो जाएंगे |
5. दाँत में खोड होने पर दाँतों में दर्द होने लगता है । इन दाँत के खोड में दर्द को रोकने के लिए लोंग के तेल में थोड़ी सी रुई को गिला करके अपने दाँत के खोड़ में लगाये । इस तेल उपयोग डॉक्टर भी करते है । इस तेल का उपयोग करने से दाँत का कीड़ा मर जाता है| और उस जगह पर दाँतों में चाँदी भर दी जाती है । जिससे ये खोड़ बंद हो जाता है ।
6. दाँतों में दर्द होने पर जल्दी आराम पाने के लिए दाल और चीनी का तेल निकालकर लगाने से दाँतों जल्दी आराम मिलता है । या फिर अमृत धारा में रुई को गिला करके दर्द वाले स्थान पर लगाने से काफी आराम मिलता है |
7. दन्त पीड़ा को ख़त्म करने के लिए नौसादर का चूर्ण बना ले । इस तैयार चूर्ण को दर्द वाले स्थान पर मसलने से दन्त पीड़ा ख़त्म हो जाती है । 
8. पायरिया जैसी बीमारी को ठीक करने के लिए सुबह उठकर अपने दाँतों को साफ करने के बाद काले तिल को खाए । खाने के कुछ समय बाद पानी पिए । यह क्रिया रात्रि को सोने से पहले भी किया जा सकता है । रोजाना करने से पायरिया की बीमारी दूर हो जाएगी । और दन्त पीड़ा भी ठीक हो जायेगा ।
उपर बताये गए सभी प्रयोग दाँतों के लिए बहुत ही उपयोगी है । इन सभी विधियों में से एक का भी उपयोग करने से दाँतों की सभी बीमारी ठीक हो जाएगी
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गोखरू पुरुषो और महिलाओ के रोगो के लिए रामबाण औषिधि, पोस्ट को शेयर करना ना भूले

गोखरू पुरुषो और महिलाओ के रोगो के लिए रामबाण औषिधि, पोस्ट को शेयर करना ना भूले

गोखरू भारत में सभी प्रदेशों में पाये जाने वाला पौधा है। यह जमीन पर फैलने वाला पौधा होता है, जो हर जगह पाया जाता है। वर्षा के आरम्भ में ही यह पौधा जंगलों, खेतों के आसपास के उग आता है। गोखरू छोटा और बड़ा दो प्रकार का होता है लेकिन इसके गुणों में समानता होती है। गोखरू की शाखाएं लगभग 90 सेंटीमीटर लंबी होती है जिसमें पत्ते चने के समान होते हैं। हर पत्ती 4 से 7 जोड़ों में पाए जाते हैं। इसकी टहनियों पर रोयें और जगह-जगह पर गाठें होती हैं।
  • गोखरू के फूल पीले रंग के होते है जो सर्दी के मौसम में उगते हैं। इसके कांटे छूरे की तरह तेज होते हैं इसलिए इसे गौक्षुर कहा जाता है। इसके बीजों से सुगंधित तेल निकलता है। इसकी जड़ 10 से 15 सेंटीमीटर लम्बी होती है तथा यह मुलायम, रेशेदार, भूरे रंग की ईख की जड़ जैसी होती है। उत्तर भारत मे, हरियाणा, राजस्थान मे यह बहुत मिलता है। गोखरू का सारा पौधा ही औषधीय क्षमता रखता है । फल व जड़ अलग से भी प्रयुक्त होते हैं।
  • गोखरू की प्रकृति गर्म होती है। यह शरीर में ताकत देने वालानाभि के नीचे के भाग की सूजन को कम करने वालावीर्य की वृद्धि करने वाला,वल्य रसायन, भूख को तेज करने वाला होता है, कमजोर पुरुषों व महिलाओं के लिए एक टॉनिक भी है। यह स्वादिष्ट होता है। यह पेशाब से सम्बंधित परेशानी तथा पेशाब करने पर होने वाले जलन को दूर करने वालापथरी को नष्ट करने वालाजलन को शान्त करने वालाप्रमेह (वीर्य विकार)श्वांस, खांसी, हृदय रोग, बवासीर तथा त्रिदोष (वात, कफ और पित्त) को नष्ट करने वाला होता है। तथा यह मासिकधर्म को चालू करता है। यह दशमूलारिष्ट में प्रयुक्त होने वाला एक द्रव्य भी है । यह नपुंसकता तथा निवारण तथा बार-बार होने वाले गर्भपात में भी सफलता से प्रयुक्त होता है ।
  • गोखरू सभी प्रकार के गुर्दें के रोगों को ठीक करने में प्रभावशाली औषधि है। यह औषधि मूत्र की मात्रा को बढ़ाकर पथरी को कुछ ही हफ्तों में टुकड़े-टुकड़े करके बाहर निकाल देती है।
  • गोखरू का फल बड़ा और छोटा दो प्रकार का होता है। । दोनों के फूल पीले और सफेद रंग के होते हैं। गोखरू के पत्ते भी सफेद होते हैं। गोखरू के फल के चारों कोनों पर एक-एक कांटा होता है। छोटे गोखरू का पेड़ छत्तेदार होता है। गोखरू के पत्ते चने के पत्तों के समान होते हैं। इसके फल में 6 कांटे पाये जाते हैं। कहीं कहीं लोग इसके बीजों का आटा बनाकर खाते हैं।
  • वैद्यक में इन्हें शीतल, मधुर, पुष्ट, रसायन, दीपन और काश, वायु, अर्श और ब्रणनाशक कहा है।
  • यह शीतवीर्य, मुत्रविरेचक, बस्तिशोधक, अग्निदीपक, वृष्य, तथा पुष्टिकारक होता है। विभिन्न विकारो मे वैद्यवर्ग द्वारा इसको प्रयोग किया जाता है।मुत्रकृच्छ, सोजाक, अश्मरी, बस्तिशोथ, वृक्कविकार, प्रमेह, नपुंसकता, ओवेरियन रोग, वीर्य क्षीणता मे इसका प्रयोग किया जाता है।
  • गर्भाशय को शुद्ध करता है तथा वन्ध्यत्व को मिटाता है । इस प्रकार यह प्रजनन अंगों के लिए एक प्रकार की शोधक, बलवर्धक औषधि है ।
  • यह ब्लैडर व गुर्दे की पथरी का नाश करता है तथा मूत्रावरोध को दूर करता है । मूत्र मार्ग से बड़ी से बड़ी पथरी को तोड़कर निकाल बाहर करता है ।
  • इसका प्रयोग कैसे करे 
  • इसके फल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम, दिन में 2 या 3 बार । पंचांग क्क्वाथ- 50 से 100 मिली लीटर ।
  • पथरी रोग में गोक्षुर के फलों का चूर्ण शहद के साथ 3 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम दिया जाता है । मूत्र के साथ यदि रक्त स्राव भी हो तो गोक्षुर चूर्ण को दूध में उबाल कर मिश्री के साथ पिलाते हैं ।
  • सुजाक रोग (गनोरिया) में गोक्षुर को घंटे पानी में भिगोकर और उसे अच्छी तरह छानकर दिन में चार बार 5-5 ग्राम की मात्रा में देते हैं । किसी भी कारण से यदि पेशाब की जलन हो तो गोखरु के फल और पत्तों का रस 20 से 50 मिलीलीटर दिन में दो-तीन बार पिलाने से वह तुरंत मिटती है । प्रमेह शुक्रमेह में गोखरू चूर्ण को 5 से 6 ग्राम मिश्री के साथ दो बार देते हैं । तुरंत लाभ मिलता है ।
  • मूत्र रोग संबंधी सभी शिकायतों यथा प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब का रुक-रुक कर आना, पेशाब का अपने आप निकलना (युरीनरी इनकाण्टीनेन्स), नपुंसकता, मूत्राशय की पुरानी सूजन आदि में गोखरू 10 ग्राम, जल 150 ग्राम, दूध 250 ग्राम को पकाकर आधा रह जाने पर छानकर नित्य पिलाने से मूत्र मार्ग की सारी विकृतियाँ दूर होती हैं । प्रदर में, अतिरिक्त स्राव में, स्री जनन अंगों के सामान्य संक्रमणों में गोखरू एक प्रति संक्रामक का काम करता है । स्री रोगों के लिए 15 ग्राम चूर्ण नित्य घी व मिश्री के साथ देते हैं । गोक्षरू मूत्र पिण्ड को उत्तेजना देता है, वेदना नाशक और बलदायक है । इसका सीधा असर मूत्रेन्द्रिय की श्लेष्म त्वचा पर पड़ता है ।
  • गोक्षुर चूर्ण प्रोस्टेट बढ़ने से मूत्र मार्ग में आए अवरोध को मिटाता है, उस स्थान विशेष में रक्त संचय को रोकती तथा यूरेथ्रा के द्वारों को उत्तेजित कर मूत्र को निकाल बाहर करता है । बहुसंख्य व्यक्तियों में गोक्षुर के प्रयोग के बाद ऑपरेशन की आवश्यकता नहीं रह जाती । इसे योग के रूप न देकर अकेले अनुपान भेद के माध्यम से ही दिया जाए, यही उचित है, ऐसा वैज्ञानिकों का व सारे अध्ययनों का अभिमत है ।
  • इसका सेवन आप दवा के रूप में या सब्जी के रूप में भी कर सकते हैं। गोखरू के फल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 या 3 बार सेवन कर सकते हैं। इसका काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर तक सेवन कर सकते हैं। गोखरू की सब्जी तबियत को नर्म करती है, शरीर में खून की वृद्धि करती है और उसके दोषों को दूर करती है। यह पेशाब की रुकावट को दूर करती है तथा मासिकधर्म को शुरू करती है। सूजाक और पेशाब की जलन को दूर करने के लिए यह लाभकारी है।
  • आचार्य चरक ने गोक्षुर को मूत्र विरेचन द्रव्यों में प्रधान मानते हुए लिखा है-गोक्षुर को मूत्रकृच्छानिलहराणाम् अर्थात् यह मूत्र कृच्छ (डिसयूरिया) विसर्जन के समय होने वाले कष्ट में उपयोगी एक महत्त्वपूर्ण औषधि है । आचार्य सुश्रुत ने लघुपंचकमूल, कण्टक पंचमूल गणों में गोखरू का उल्लेख किया है । अश्मरी भेदन (पथरी को तोड़ना, मूत्र मार्ग से ही बाहर निकाल देना) हेतु भी इसे उपयोगी माना है 
  • श्री भाव मिश्र गोक्षुर को मूत्राशय का शोधन करने वाला, अश्मरी भेदक बताते हैं व लिखते हैं कि पेट के समस्त रोगों की गोखरू सर्वश्रेष्ठ दवा है । वनौषधि चन्द्रोदय के विद्वान् लेखक के अनुसार गोक्षरू मूत्र पिण्ड को उत्तेजना देता है, वेदना नाशक और बलदायक है ।
    इसका सीधा असर मूत्रेन्द्रिय की श्लेष्म त्वचा पर पड़ता है
     । सुजाक रोग और वस्तिशोथ (पेल्विक इन्फ्लेमेशन) में भी गोखरू तुरंत अपना प्रभाव दिखाता है ।
    श्री नादकर्णी
     अपने ग्रंथ मटेरिया मेडिका में लिखते हैं-गोक्षुर का सारा पौधा ही मूत्रल शोथ निवारक है । इसके मूत्रल गुण का कारण इसमें प्रचुर मात्रा में विद्यमान नाइट्रेट और उत्त्पत तेल है । इसके काण्ड में कषाय कारक घटक होते हैं और ये मूत्र संस्थान की श्लेष्मा झिल्ली पर तीव्र प्रभाव डालते हैं ।
    होम्योपैथी में श्री विलियम बोरिक
     का मत प्रामाणिक माना जाता है । विशेषकर वनौषधियों के विषय में वे लिखते हैं कि मूत्र मार्ग में अवरोधवीर्यपात, प्रोस्टेट ग्रंथि की सूजन व अन्य यौन रोगों में गोखरू का टिंक्चर 10 से 20 बूंद दिन में तीन बार देने से तुरंत लाभ होता है ।
  • सावधानी  :
    गोखरू का अधिक मात्रा में सेवन ठण्डे स्वभाव के व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो सकता है। गोखरू का अधिक मात्रा का सेवन करने से प्लीहा और गुर्दों को हानि पहुंचती है और कफजन्य रोगों की वृद्धि होती है।
    गोखरू की सब्जी का अधिक मात्रा में सेवन प्लीहा (तिल्ली) के लिए हानिकारक हो सकता है।

सिर्फ 2 दिनों में लीवर को करें शुद्ध, पोस्ट को शेयर करना ना भूले

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आज की पीढ़ी स्वस्थ जीवन शैली पर ध्यान नहीं दे रही है, इस कारण से कई लोगो के लीवर के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है और लीवर अच्छे से कार्य करने में असफल है। लिवर को बनाएं मजबूत, हमारे द्वारा लिए जाने वाले कई प्रकार के विषाक्त पदार्थ है जो शरीर में लीवर की खराबी के लिए ज़िम्मेदार है।
लीवर शरीर के महत्वपूर्ण अंगो में से एक है लेकिन आजकल हम जिस वातावरण में रहते हैं, वह पूरी तरह से विषैला हो चुका है। पानी, भोजन और हवा भी आजकल हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती जा रही है। ये साँसों की नली को काफी नुकसान पहुंचाते हैं और इसलिए हमें स्वस्थ रूप से जीवन जीने के तरीके के बारे में सोचना शुरू कर देना चाहिए।
आज हम आपको एक ऐसी ड्रिंक के बारे में बताएगे जिससे आपका लीवर विषैले तत्वों से मुक्त हो जाएगा
सामग्री :-
  • 2 कप पानी (400 ml)
  • 150 ग्राम किशमिश
विधि :-
*आपको किशमिश का ध्यान से चुनाव करना पड़ेगे जो किशमिश रंग में डार्क हो उन्हें ही इस ड्रिंक के लिए चुने | चुने हुए किशमिश को धो कर साफ़ करलें|    
*दो कप पानी को उबलने के लिए आग पर रखें जब पानी उबलने लगे तो इसमें किशमिश डाल कर 20 मिनटों तक उबलने दें 
*किशमिस को पूरी रात पानी सोखने दें | दुसरे दिन सुबहे पानी को पुन लें |
*खाली पेट (नाश्ते के 30-35 मिनट पहले) इस पानी का सेवन करें |

पुरानी और कठिन से कठिन कब्ज का रामबाण इलाज सूर्यतापित हरा पानी, पोस्ट को शेयर करना ना भूले

पुरानी और कठिन से कठिन कब्ज का रामबाण इलाज सूर्यतापित हरा पानी, पोस्ट को शेयर करना ना भूले

पुरानी और कठिन से कठिन कब्ज का रामबाण इलाज सूर्यतापित हरा पानी
अपने अद्वितीय कब्ज निवारक और रक्तशोधक गुणों के कारण हरा पानी चिकित्सा जगत को एक ऐसी अनमोल देन है की जिसका कोई मुक़ाबला नहीं। पुरानी से पुरानी और कठिन से कठिन कब्ज के कई केस हरे पानी के प्रयोग से कुछ ही सप्ताह और कुछ तो एक या दो दिन में ही में बिलकुल ठीक हुए है।
आइये जाने कब्ज में बेजोड़ सूर्यतापित हरा पानी
  • हरे पानी से यहाँ तात्पर्य यह है के किसी हरे रंग की साफ़ बोतल का तीन चौथाई भाग साधारण पानी से भरकर बोतल का मुंह कॉर्क या ढक्कन से ठीक से बंद करने के बाद 6 से 8 घंटे धुप में रखा हुआ सूर्यतापित (सन चार्ज) किया हुआ पानी। यद्यपि यह पानी हरे रंग का नहीं होता परन्तु हरे रंग के रोग निवारक गुण आ जाते है, यथा शरीर की गंदगी और विजातीय द्रव्य बाहर निकालना और पुरानी से पुरानी कब्ज दूर करना, गुर्दो (किडनी), आंतो और त्वचा की कार्यप्रणाली सुधारना और इस प्रकार रक्त से दूषित पदार्थों को बाहर निकालने में सहायता करना तथा खून साफ़ करना, शरीर का ताप संतुलित रखना आदि। हरा पानी प्रतिदिन बनाये और अपने आप ठंडा हो जाने पर काम में लाएं।
  • इसी प्रकार नारंगी या लाल शेड की कत्थई या बियर की ब्राउन बोतल में सूर्यतापित किया गया पानी नारंगी पानी कहलायेगा। 
  • हरे पानी के सेवन से साधारण कब्ज तो तीन चार दिन में ठीक हो जाती है। कब्ज दूर करने के लिए हरा पानी प्रात: उठते ही कुल्ला करने के बाद नित्य खाली पेट आधा कप से एक कप, दिन के खाने के आधा घंटे पहले आधा कप, और शाम के खाने से आधा घंटे पहले आधा कप की मात्रा में, इस प्रकार दिन में तीन बार कुछ दिन लें

पेट दर्द है तो इसको बेपरवाह ना करें ये विभिन्न रोगों कि और इशारा कर सकता है

पेट दर्द है तो इसको बेपरवाह ना करें ये विभिन्न रोगों कि और इशारा कर सकता है

पेट दर्द के कई कारण हो सकते हैं, दायीं तरफ बायीं तरफ या मध्य में दर्द, ये अलग अलग कारणों से होता है, जिनमे गाल ब्लैडर स्टोन, पेप्टिक अलसर, पेनक्रिएटाइटिस, कब्ज, बदहजमी, सीने में जलन, मुंह में खट्टा पानी आना, अपेंडिक्स इत्यादि हैं, लेकिन अक्सर हम पेट दर्द कि सही वजह नहीं जान पाते, आज हम आपको इन कुछ वजहों के बारे में बताएँगे, जिन से आप जान पाएंगे के ये दर्द किस कारण से हो सकता है.
पेट के दायें हिस्से में दर्द
पेट के दायें हिस्से में लीवर के नीचे गाल ब्लैडर होता है, जो लीवर से निकले हुए पित्त का भण्डारण करता है, यहाँ पर दर्द गाल ब्लैडर में स्टोन कि वजह के कारण हो सकता है, ऐसे दर्द में डॉक्टर्स ऑपरेशन कि सलाह ही देते हैं, क्यूंकि उनके पास इस स्टोन को निकालने का कोई भी रास्ता नहीं है, मगर आप आयुर्वेद की मदद द्वारा ये निकाल सकते हैं
पेट के दायें हिस्से में नीचे की और दर्द
पेट के दायें हिस्से में नीचे की और दर्द अपेंडिक्स कि वजह से हो सकता है, अधिक तला भुना खाने से या आंतो कि अच्छे से सफाई ना होने से आंतो के आखरी हिस्से में मल विषाक्त पदार्थ जमा होते रहने से अपेंडिक्स प्रभावित होती है, और डॉक्टर्स इसको भी काटने कि ही राय देते हैं, ऐसे में आप आयुर्वेद कि सहायता से इसका इलाज कर सकते हैं
पेट के बीच में दर्द
पेट के बीच में दर्द अल्सर का संकेत है, यह बैक्टीरियल इन्फेक्शन या पेन किलर का सेवन करने के कारण होता है, अगर पेप्टिक अल्सर का दर्द हो तो तुरंत आप छाछ या दूध कि लस्सी कर के पियें तो तुरंत आराम मिलेगा, इसके लिए आप एक चौथाई दूध में तीन चौथाई पानी मिला कर इसको अच्छे से मथ लीजिये तो ये दूध कि लस्सी बन जाएगी, अल्सर के रोगियों के लिए यह अमृत समान है
पेट के बीच से पीठ तक होता हुआ दर्द
यह दर्द पेनक्रिएटाइटिस होने कि और इशारा करता है, यह अधिक शराब पीने से होता है, शराब का नियमित सेवन करने से पैंक्रियास (अग्नाशय) प्रभावित होता है, इस से बचने के लिए अल्कोहल से दूरी रखें और शरीर में पानी कि कमी ना होने दें
पेट दर्द, मल सख्त होने के साथ पेट का साफ़ ना होना
यह कब्ज के लक्षण हैं, अधिक तला भुना, मसालेदार खाना, कोल्ड ड्रिंक्स, अधिक भोजन और तनाव इसके प्रमुख कारण हैं, ऐसे में फाइबर वाले भोजन अधिक सेवन करने चाहिए, दही छाछ में अजवायन और जीरा का तड़का लगा कर खाएं
बदहजमी, सीने में जलन, मुंह में खट्टा पानी आना
इन समस्याओं का कारण एसिडिटी होता हैं, जब हम भोजन करते हैं तो इसको पचाने के लिए लीवर कुछ एसिड का स्त्राव करता है जो भोजन में पचाने में अति सहायक होते हैं, कई बार ये एसिड अधिक मात्रा में बनते है, परिणामस्वरूप सीने में जलन या मुंह में खट्टा पानी आ जाना ऐसे लक्षण प्रतीत होते हैं. ऐसे मरीजो को जिनको मुंह में खट्टा पानी अधिक आता हो उनको रात्रि को गरिष्ठ भोजन नहीं लेना चाहिए, फलों में सेब संतरा केला ज़रूर खाएं. अगर आप को एसिडिटी या हाइपर एसिडिटी हो गयी हो तो आप आधा चम्मच जीरा कच्चा ही चबा चबा कर खा लीजिये, और ऊपर से आधा गिलास साधारण जल पी लीजिये, आपको तुरंत आराम आ जायेगा
पेट के उपरी हिस्से में खिंचाव के साथ फूलना
यह समस्या गैस के कारण हो सकती है, ऐसी स्थिति में चाय, कॉफ़ी, मिर्च, तला भुना खाना, खटाई वाली चीजें ना खाएं. नमक कम लें, खाने के साथ पानी ना पियें

पैर में असहनीय दर्द – गृध्रसी या सायटिका का आयुर्वेदिक इलाज , पोस्ट शेयर करना ना भूले

पैर में असहनीय दर्द – गृध्रसी या सायटिका का आयुर्वेदिक इलाज , पोस्ट शेयर करना ना भूले

पैर में असहनीय दर्द – गृध्रसी या सायटिका का आयुर्वेदिक इलाज
सायटिका एक तरह का भयानक दर्द है जिसका मुख्य कारण सायटिक नर्व है। यह वो नर्व है जो रीढ़ के निम्न भाग से निकलकर घुटने के पीछे की ओर से पैर की तरफ जाती है। शरीर को अधिक समय तक एक ही स्थिति में रखने से यह दर्द बढ़ जाता है यह दर्द बहुत असहनीय होता है। अक्सर यह समस्या उन लोगों में होती है जो बहुत समय तक बैठ कर काम करते हैं या बहुत अधिक चलते रहने से अत्यधिक साइकिल, मोटर साइकिल अथवा स्कूटर चलाने से सायटिका नर्व पर दबाव पड़ता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अचानक हड्डियों पर जोर पड़ जाने से भी इस प्रकार का दर्द होता है। इस प्रकार का दर्द अकसर 40 से 50 वर्ष की उम्र में होता है और यह बीमारी बरसात या ठंड के मौसम में ज्यादा तकलीफ देती है। अगर आप भी सायटिका दर्द से परेशान है तो आइए हम आपको बताते हैं कुछ ऐसे आयुर्वेदिक प्रयोग जिनसे सायटिका दर्द जल्द ही ठीक हो जाएगा।
आयुर्वेदिक प्रयोग :-
पहला प्रयोग।मीठी सुरंजन 20 ग्राम + सनाय 20 ग्राम + सौंफ़ 20 ग्राम + शोधित गंधक 20 ग्राम + मेदा लकड़ी 20 ग्राम + छोटी हरड़ 20 ग्राम + सेंधा नमक 20 ग्राम इन सभी को लेकर मजबूत हाथों से घोंट लें व दिन में तीन बार तीन-तीन ग्राम गर्म जल से लीजिये।दूसरा प्रयोग।लौहभस्म 20 ग्राम + रस सिंदूर 20 ग्राम + विषतिंदुक बटी 10 ग्राम + त्रिकटु चूर्ण 20 ग्राम इन सबको अदरक के रस के साथ घोंट कर 250 मिलीग्राम के वजन की गोलियां बना लीजिये और दो दो गोली दिन में तीन बार गर्म जल से लीजिये।तीसरा प्रयोग। 50 पत्ते परिजात या हारसिंगार व 50 पत्ते निर्गुण्डी के पत्ते लाकर एक लीटर पानी में उबालें। जब यह पानी 750 मिली हो जाए तो इसमें एक ग्राम केसर मिलाकर उसे एक बोतल में भर लें। यह पानी सुबह शाम 3/4 कप मात्रा में दोनों टाइम पीएं। साथ ही दो-दो गोली वातविध्वंसक वटी की भी लें।
इसका भी रखें ख्याल।दर्द के समय गुनगुने पानी से नहायें ।आप सन बाथ भी ले सकते हैं, अपने आपको ठंड से बचाएं। सुबह व्यायाम करें या सैर पर जायें ।अधिक समय तक एक ही स्थिति में ना बैठें या खड़े हों। अगर आप आफिस में हैं तो बैठते समय अपने पैरों को हिलाते डुलाते रहें।

तुरंत करे काली झाइयाँ गायब , पोस्ट को एक बार ज़रूर पढ़ें

तुरंत करे काली झाइयाँ गायब , पोस्ट को एक बार ज़रूर पढ़ें

आजकल महिलाएं अपनी त्वचा सम्बन्धी समस्याओं को दूर करने के लिए न जाने क्या क्या तरिके आजमाती है. कभी कॉस्मेटिक क्रीम, इंजेक्शन, सर्जरी आदि, परन्तु यें सब क्यूँ? केवल अपने आपको खुबसूरत दिखाने के लिए. अपने आपको सुन्दर बनाने के लिए क्या इन सब तरीको को अपनाना जरूरी है? बिलकुल नहीं. जब हमारी प्रकृति में ही अनेक प्रकार की वनस्पती व जड़ी-बूटियां उपलब्ध है जिनके इस्तेमाल से हम अपने रूप-सौन्दर्य को निखार सकते है. जब हमारे पास खुबसूरत दिखने के प्राक्रतिक तरीके है तो हम निरंतर कृत्रिम खूबसूरती की ओर क्यूँ आकर्षिक होते है, क्यूँ हम कृत्रिम खूबसूरती पाने के लिए अपना समय और पैसा नष्ट करते है? जबकि हम इस बात से भी अनजान नहीं है कि कृत्रिम खुबसूरती ज्यादा दिनों तक नहीं रहती है, वह जल्दी ही हमारा साथ छोड़ देती है. तथा प्राकृतिक सुन्दरता हमेशा हमें जवां बनाए रखती है.
हम आपको कुछ ऐसे प्राकर्तिक तरीके बताते है जिनसे न केवल आपकी त्वचा खुबसूरत बढ़ेगी बल्कि समय से पहले होने वाली त्वचा सम्बन्धी परेशानी (झाइयाँ) से भी निजात मिलेगा.
१. चेहरे की झाइयाँ को दूर करने के लिए रीठे के छिलकों को पानी में पीसकर झाई वाले स्थान पर लगाये. तथा दूसरे सप्ताह में तुलसी के पत्तो को पानी में पीसकर झाइयों वाली जगह पर लगाये. इस तरह दो सप्ताह में ही झाइयाँ दूर हो जायंगी तथा चेहरे पर पहले जैसा आकर्षण और निखार आ जाएगा.
२. शहद का उपयोग भी झाइयों के लिए उत्तम होता है, इसके लिए एक चमच्च शहद में एक चम्मच सिरका मिलाकर झाइयों वाली जगह पर लगाए. इसका प्रयोग दिन में केवल एक बार ही करें.   
३. अंडे के सफ़ेद भाग को निकालकर अच्छी तरह फेंटें, फिर इसमें बादाम का पेस्ट और दो बुँदे शहद की डालकर चेहरे पर 20 मिनट के लिए लगाकर रखें. फिर चेहरा को ठन्डे पानी से धो लें, इसके नियमित उपयोग से कुछ ही दिनों में बदरंग त्वचा का रंग एकसार हो जायगा.
४. रात में सोने से पूर्व एक चमच्च बादाम के तेल में ग्लिसरीन और 3-4 बुँदे निम्बू के रस की मिलाकर चेहरे, गर्दन व बाहों पर लगा लें. तथा सुबह हलके गुनगुने पानी से धो लें. कुछ ही दिनों में त्वचा पहले से अधिक स्वस्थ नजर आयगी.
५. दो चम्मच बादाम रोगन, दो चमच्च सिरका या निम्बू का रस तथा एक चम्मच ग्लिसरीन मिलाकर फेंटें. इस लेप को रोजाना रात में सोने से पूर्व 2-3 मिनट के लिए चेहरे की मालिश के लिए प्रयोग करें.
६. एक बादाम को घिसकर उसमें एक चम्मच शहद तथा एक चमच्च हाइड्रोजन पैराक्साइड मिलाकर झाइयों वाले स्थान पर लगाये इसके लगभग 30 मिनट पश्चात चेहरा धो लें. कुछ ही दिनों में चेहरे की झाइयाँ गायब होने लगेगी.
७. एक चम्मच निम्बू के रस में एक चम्मच शहद मिलाकर उसमें कुछ मात्रा हाइड्रोजन पैराक्सइड की भी मिला लें. इस पेस्ट को चेहरे पर लगाकर सूखने के लिए छोड़ दें. इसके नियमित इस्तेमाल से आपको अवश्य लाभ होगा.
८. दो चमच्च दूध का पाउडर में दो चमच्च हाइड्रोजन पैराक्सइड मिला लें. अब इस लेप को पूरे चेहरे पर लगाये और सूखने के बाद ठन्डे पानी से चेहरा धो लें.
९. तीन चमच्च दूध के पाउडर में आधा कप खीरे का पेस्ट, एक निम्बू के रस, एक चमच्च सोयाबीन अथवा जौं का आटा मिलाकर एक लेप तैयार कर लें और इसे फ्रिज में रखें. प्रतिदिन इससे मालिश करें तथा मालिश के बाद इसे चेहरे पर लगाकर कुछ देर के लिए सूखने दें उसके बाद मसलकर धो लें. इसके नियमित इस्तेमाल से चेहरे की झाइयाँ तो दूर होंगी ही साथ साथ त्वचा की रंगत भी निखरेगी.
१०. कच्चे दूध में चुटकी भर हल्दी और चंदन पाउडर मिलाकर एक पेस्ट तैयार कर लें. इसको प्रतिदिन चेहरे पर लगायें. इससे चेहरे की झाइयाँ और त्वचा का कालापन दूर हो जायगा.    
११. केले में शहद मिलाकर चेहरे पर 15 - 20 मिनट के लिए लगायें और फिर गुनगुने पानी से चेहरा धो लें. इससे झाइयाँ आना कम होंगी.
उपरोक्त लिखे उपायों में कोई भी उपाय जो आपको आपकी त्वचा के हिसाब से ठीक लगे तथा सरल लगे यदि आप उसे नियमित रूप से अपनायेगी तो निश्चित रूप से आपको लाभ होगा. इसके साथ साथ आपको आपकी दिनचर्या, आदत व खान-पान पर भी ध्यान अवश्य रखना होगा.
झाइयाँ होने पर कुछ सामान्य ध्यान देने योग्य बातें :-
झाइयाँ होने पर अक्सर महिलाएं ब्लीच का इस्तेमाल करती है. वें यह सोचती है कि ब्लीच झाइयाँ छिपाने का सबसे बढ़िया तरीका है, जो कि बिलकुल गलत है. ब्लीच झाइयों को छिपाता अवश्य है परन्तु केवल कुछ समय के लिए. ब्लीच से झाइयों के दागो में बहुत कम समय के लिए ही परिवर्तन आता है. इसके साथ साथ ब्लीच करवाने के बाद हमारी त्वचा सूर्य की किरणों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती है. जिसके परिणामस्वरूप अल्ट्रा-वायलेट किरणों के प्रभाव के कारण झाइयाँ और अधिक गहरी हो जाती है. इसके अलावा लम्बे समय से हमारी त्वचा पर रही झाइयाँ या झाई हमारी त्वचा के लिए और अधिक हानिकारक हो जाती है. झाइयाँ अधिक पुरानी होने पर अधिक गहरी हो जाती है तथा फिर इनका इलाज करना आसान नहीं रह जाता, पुरानी होने पर इनका इलाज भी मुश्किल हो जाता है. ऐसी स्तिथी में इनका इलाज किसी कुशल व अनुभवी विशेषज्ञ द्वारा करना चाहिए. अतः झाइयों का इलाज जितना जल्दी हो सके प्राकर्तिक तरीकों से कर लेना चाहिए. ईलाज से बेहतर है कि हम कुछ छोटी छोटी बातों को ध्यान में रखकर अपनी त्वचा को झाइयों से बचाए रखे.
१. अपनी त्वचा को सुन्दर व आकर्षक बनाए रखने के लिए यह आवश्य है कि त्वचा को धूप, धूल और मिट्टी से बचाए रखे, बाहर जाने से पहले किसी अच्छी किस्म का आयुर्वेदिक सनस्क्रीन लोशन का उपयोग करे.
२. जितना हो सके सौन्दर्य प्रसाधनों का कम से कम प्रयोग करें. यदि इनका प्रयोग करें भी तो इस बात को अवश्य ध्यान में रखे कि रात को सोने से पूर्व चेहरा अच्छी प्रकार से साफ़ कर लें. 
३. शरीर में रक्त की मात्रा कम होने पर भी हमारी त्वचा की कांति कम होने लगती है इसीलिए समय समय पर रक्त की जांच करवाए यदि रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो तो अपने खान-पान पर पूरा ध्यान दें.
४. सम्भव हो तो बाहरी प्रसाधनों से ब्लीचिंग न करवाएं, इससे त्वचा सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणों के प्रति और अधिक संवेदनशील हो जाती है, जिससे त्वचा और अधिक भद्दी नजर आती है. आप ब्लीचिंग के लिए घरेलू प्रसाधनों का प्रयोग कर सकती है. यह बाहरी सौन्दर्य प्रसाधनों की अपेक्षा एक बेहतर विकल्प है.
५. अपनी दिनचर्या में सुधार लाए, नियमित रूप से व्यायाम आपके शरीर के साथ साथ आपकी त्वचा के लिए भी अच्छी होता है. भोजन में पर्याप्त मात्रा में फल, दालें, हरी सब्जियाँ आदि को शामिल करें.
६. पर्याप्त मात्रा में नींद लें. अपने आप को चिन्ता व परेशानियों से दूर रखें. यदि आप अंदर से खुश रहेंगी तो आपकी त्वचा खुद-ब-खुद खिल उठेगी.  
७. सौन्दर्य के लिए फल और तरल पदार्थ, बिना नमक मिर्च वाले खाना जहाँ वरदान है वही जंक फ़ूड जैसे पिज़्ज़ा, बर्गर, चिप्स और डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ सेहत के साथ साथ हमारी सौन्दर्य को भी बिगाड़ते है. अतः जितना हो सके हमें जंक फ़ूड से दूर रहना चाहिए.
८. इसके अलावा सुंदर त्वचा के लिए जिंक भी बहुत फायदेमंद तत्व होता है यह मृत त्वचा को हटाकर नई त्वचा बनाने में मदद करता है.

सदा के लिए शूगर से मुक्ति, मधुमेह रोगी इस पोस्ट को पढने से ना चुके

सदा के लिए शूगर से मुक्ति, मधुमेह रोगी इस पोस्ट को पढने से ना चुके

मधुमेह के रोगियों के लिए सरल घरेलु नुस्खा 
मधूमेह ( Sugar)
वैसे तो शूगर के सैकडों अनुभूत नुस्खें है लेकिन आज ऐसा नुस्खा जो कि अनुभूत है, सैकडो़ रोगियो पर आजमाया है| इस योग की खासीयत यह है कि यह नये और पुराने रोगियो को 2-3 महीने प्रयोग करने से सदा के लिए शूगर से मुक्ति दिला सकता है| और अगर भविष्य में फिर कभी भी दिक्कत आये तो फिर दोबारा इस प्रयोग को कर सकते हैं.
सही होने पर अपने अनुभव ज़रूर शेयर करेंइस फारमूले को बनाने की सावधानी यही है कि सारी दवा ताजा ही लेनी है ,
जो इस प्रकार है –
१) नीम पत्र
२) जामुन पत्र
३) अमरूद पत्र
४) बेल पत्र
५) आम पत्र
६) गुडमार बूटी ( यह पंसारी से लें, ओर पाउडर बनाकर ही डालें)
सबको सामान भाग लेकर धोकर , कूटकर चटनी जैसा,किसी साफ बर्तन मे डालकर, 16 गुना जल (अर्थात अगर उपरोक्त सामन 100 ग्राम है तो पानी 1600 ग्राम) डालकर धीमी आँच पर रख दें, जब पानी चोथा हिस्सा (अर्थात 400 ग्राम) रह जाए तब उतारकर, ठंडा होने पर, मल छानकर (अर्थात हाथों से अच्छे से घोट कर फिर छान लें) थोड़ी देर के लिए रख दीजिये, जब पानी निथर जाए तो निथारकर रख ले, दवा तैयार है | 
सुबह खाली पेट 20-50 ml तक लें| इसके बाद आधे घंटे तक कुछ भी खाए पियें नहीं.
परहेज- चीनी , चाय, काफी , आलू , मेदा, डालडा घी बिल्कुल बंद कर दें|

डैंड्रफ को करे कम और ड्राय स्किन में डाले जान,पोस्ट को शेयर करना ना भूले

डैंड्रफ को करे कम और ड्राय स्किन में डाले जान,पोस्ट को शेयर करना ना भूले

दुनिया के हर कोने में मिलने वाले नीम के अपने ही ब्यूटी फायदे हैं. ये आपकी स्किन के लिए काफी लाभदायक होता है. आपको बता रहा है नीम के 5 ब्यूटी फायदों के बारे में, जिन्हें आप जानकर ज़रूर अपनाना चाहेंगे.
1. बचाता है कील-मुहांसों से - एंटी-बैक्टीरिअल पावर के साथ नीम में ऑयल-कंट्रोल प्रोपटीज़ मौजूद होती है. नीम के मदद से आप एक्ने की समस्या से आसानी से छुटकारा पा सकते हैं 

ऐसे करें इस्तेमाल- 20-30 नीम के पत्तों को 3-4 कप पानी में उबाल लें. जब पत्ते अपना रंग छोड़ दें तब उन्हें निचोड़ लें और पानी को ठंडा होने दें. जब पानी ठंडा हो जाए तब कॉटन बॉल को इसमें डुबोएं और उसे अपने प्रॉब्लम एरिया पर लगाएं. 
2. है एक क्लीनज़र भी - उसी नीम के एक्सट्रैक्ट (जिसे एक्ने से छुटकारा पाने के लिए तैयार किया है) को क्लीनज़र की तरह भी इस्तेमाल कर सकती हैं. इस लिक्विड को नहाने के पानी में मिलाएं और उसे एक नैचुरल क्लीनज़र की तरह इस्तेमाल करें. एक बाल्टी पानी में 100 ml सॉल्यूशन काफी है
3. डैंड्रफ को भगाए चुटकियों में - धूप में नीम के पत्तों को सुखा लें और फिर उन्हें मसलकर पाउडर बना लें. इसमें थोड़ा नारियल तेल, नींबू का रस और पानी मिलाकर मोटा पेस्ट तैयार कर लें. इसे अपने स्कैल्प पर लगाएं. जब ये सूख जाए तो इसे धो लें. हफ्ते में तीन बार इसका इस्तेमाल करें और आप देखेंगे कि कैसे आपकी ब्लैक टी-शर्ट पर गिरने वाली उन सफेद पपड़ी में कमी आ गई है.  
4. ड्राय स्किन के लिए भी है असरदार - अगर आपकी स्किन बहुत ज़्यादा ड्राय है, तो नीम से तैयार करें अपना DIY पैक और पाएं इससे राहत. नीम के पत्तों का पाउडर लें और इसमें पानी और ग्रेपसीड ऑयल मिलाएं. इन्हें अच्छी तरह से मिलाकर एक मोटा पेस्ट तैयार कर लें. अब इसे अपने चेहरे पर लगाएं और सूख जाने के बाद चेहरे को धो लें. ऐसा हर हफ्ते करें और आप जल्द ही अपनी स्किन में हुए बदलाव को महसूस करेंगी
5. बढ़े हुए पोर्स को करें कम - बढ़े पोर्स को नीम की मदद से आसानी से कम किया जा सकता है. इन बढ़े पोर्स की वजह से ही ब्लैकहेड्स और व्हाइटहेड्स की समस्या होती है.  
ऐसे करें इस्तेमाल - संतरे के छिलके और नीम के पत्ते को लें और इन्हें पीसकर पेस्ट तैयार कर लें. अब इसमें दूध, दही और शहद मिलाकर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को अपनी स्किन पर लगाएं और सूखने दें. जब ये सूख जाए तो इसे धो लें. बेहतर और जल्द नतीजे के लिए ऐसा हफ्ते में तीन बार करें.

रोज 1 अंजीर खाने से मर्दाना ताकत तो बढ़ेगी ही जाने और भी फायदे ,पोस्ट शेयर करना ना भूले

रोज 1 अंजीर खाने से मर्दाना ताकत तो बढ़ेगी ही जाने और भी फायदे ,पोस्ट शेयर करना ना भूले

अंजीर एक स्वादिष्ट व स्वास्थ के लिए गुणकारी फल है| इसे सुखाकर कर हम मेवे के रूप में इस्तेमाल करते है| उतना ही लाभदायक भी है। अंजीर के सूखे फल बहुत गुणकारी होते हैं। अंजीर खाने से कब्ज दूर हो जाती है। अंजीर को सर्दियों में खाने का विशेष महत्व है। इसमें आयरन काफी मात्रा में होता है। अंजीर में कई रासायनिक तत्व पाए जाते हैं इसमें पानी 80 प्रतिशल, प्रोटीन 3.5 प्रतिशत, वसा 0.2, रेशे 2.3 प्रतिशत, क्षार 0.7 प्रतिशत, कैल्शियम 0.06 प्रतिशत, फॉस्फोरस 0.03, आयरन1.2 मिग्रा मात्रा में होता है। गैस और एसीडिटी से भी राहत मिलती है। सूखा हुआ अंजीर हमेशा बाजार में आपको मिल सकता है।
सूखे अंजीर को उबाल कर बारीक पीस कर गले की सुजन या गांठ पर बाँधा जाए तो लाभ पहुंचता है। ताजे अंजीर का दूध के साथ सेवन करने से  शक्तिवर्धक होता है। अंजीर वीर्य वर्धक और मर्दाना शक्ति वर्धक होता हैं, वो लोग जो अपने आप को कमज़ोर नामर्द या नपुंसक समझते हैं उनके लिए ये वरदान की तरह है।

  • चार अंजीर थोड़े से पानी में चार घंटे भिगोएं, फिर यह पानी और अंजीर एक गिलास दूध में उबाल कर नित्य रात को सेवन करें। मर्दाना शक्ति बहुत बढ़ जाएगी।
  • अंजीर में अमीनो एसिड्स के अच्छे स्रोत होते हैं, जिससे कामेच्छा बढ़ती है। अंजीर खाने से सेक्स स्टैमिना भी बढ़ती है।
  • पाचनतंत्र मजबूती– अंजीर में फाइबर होने की वजह से ये पेट के लिए अच्छा है| 3 अंजीर के टुकड़ों में 5 gm फाइबर होता है| जो हमारी रोज की जरुरत का 20% है| अंजीर पाचन से जुडी सारी परेशानी दूर करता है| मधुमेह के लिए– मधुमेह मतलब डायबटीज वालों के लिए अंजीर फाइबर का अच्छा स्त्रोत है| इसमें हल्की मिठास भी होती है जिससे ये आपकी मीठा खाने की अतितीव्र इच्छा को कम करता है| अंजीर का कितना सेवन करना है यह आप अपने डॉक्टर से सलाह ले|
    कमर व सर्द दूर करे –अंजीर खाने से शरीर में होने वाले दर्दो से आराम मिलता है| अंजीर की खाल का लेप सर में लगाने से सर दर्द दूर होता है|
    हड्डियों के लिए- हड्डियों की कमजोरी दूर करने और उसे मजबूत बनाने के लिए शरीर को कैल्शियम की जरूरत होती है। अंजीर शरीर में तीन प्रतिशत कैल्शियम की कमी को पूरा करता है जिससे शरीर की हड्डियां मजबूत बनती हैं।
    खांसी– अंजीर का सेवन करने से सूखी खांसी दूर हो जाती है। अंजीर पुरानी खांसी वाले रोगी को लाभ पहुंचाता है क्योंकि यह बलगम को पतला करके बाहर निकालता रहता है।
    बवासीर में राहत-बवासीर की बीमारी से बचने के लिए आप खाली पेट सुबह के समय अंजीर को गुनगुने पानी के साथ खाएं। कुछ ही दिनों में आपको बवासीर से मुक्ति मिल जाएगी।
    पेशाब का अधिक आना-3-4 अंजीर खाकर, 10 ग्राम काले तिल चबाने से यह कष्ट दूर होता है।
    दांतों का दर्द- अंजीर का दूध रुई में भिगोकर दुखते दांत पर रखकर दबाएं।
    मुंह के छाले-अंजीर का रस मुंह के छालों पर लगाने से आराम मिलता है।

ॐ उच्चारण आत्मा का वो चमत्कारी संगीत है जो कैंसर, हृदय रोग, रक्त चाप और मानसिक तनाव को हमेशा के लिए जड़ से मिटा देगा, जरूर पढ़े

ॐ उच्चारण आत्मा का वो चमत्कारी संगीत है जो कैंसर, हृदय रोग, रक्त चाप और मानसिक तनाव को हमेशा के लिए जड़ से मिटा देगा, जरूर पढ़े

➡ ॐ उच्चारण का वैज्ञानिक महत्त्व :
  • ओम का यह चिन्ह 'ॐ' अद्भुत है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है। बहुत-सी आकाश गंगाएँ इसी तरह फैली हुई है। ब्रह्म का अर्थ होता है विस्तार, फैलाव और फैलना। ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं। यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है।
  • ॐ को ओम कहा जाता है। उसमें भी बोलते वक्त 'ओ' पर ज्यादा जोर होता है। इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं। इस मंत्र का प्रारंभ है अंत नहीं। यह ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है। अनाहत अर्थात किसी भी प्रकार की टकराहट या दो चीजों या हाथों के संयोग के उत्पन्न ध्वनि नहीं। इसे अनहद भी कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड में यह अनवरत जारी है।
  • तपस्वी और ध्यानियों ने जब ध्यान की गहरी अवस्था में सुना की कोई एक ऐसी ध्वनि है जो लगातार सुनाई देती रहती है शरीर के भीतर भी और बाहर भी। हर कहीं, वही ध्वनि निरंतर जारी है और उसे सुनते रहने से मन और आत्मा शांती महसूस करती है तो उन्होंने उस ध्वनि को नाम दिया ओम।
  • साधारण मनुष्य उस ध्वनि को सुन नहीं सकता, लेकिन जो भी ओम का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है। फिर भी उस ध्वनि को सुनने के लिए तो पूर्णत: मौन और ध्यान में होना जरूरी है। जो भी उस ध्वनि को सुनने लगता है वह परमात्मा से सीधा जुड़ने लगता है। परमात्मा से जुड़ने का साधारण तरीका है ॐ का उच्चारण करते रहना।
➡ ॐ उच्चारण के चमत्कारी स्वास्थ्य लाभ :
  • प्रतिदिन हमें आधा घंटे तक ऊँ का उच्चारण करना चाहिए है। ऊँ दुनिया का सबसे पवित्र अक्षर माना गया है। जिसका कोई निश्चित अर्थ नहीं है। यह निराकार व असीम को प्रकट करने वाला अक्षर है। उसका शब्दों द्वारा कोई अर्थ नहीं बताया जा सकता है। यह हमारे सूक्ष्म शरीर को ठीक करता है, लयबद्ध करता है। ऊँकार की ध्वनि करने से शरीर के कम्पन सुधरते है। मन शरीर व भावों में संतुलन आता है। ऊँ की ध्वनि करने से उत्पन्न कम्पन हमारी भावनाओं को सुहाते है, दिल को अच्छे लगते है। मन के शोर को कम करते है। स्वयं के प्रति सजग करते है। इस तरह के कम्पन से अशान्ति कम होती है, शान्ति बढ़ती है। स्नायु तन्त्र शिथिल होता है। उत्तेजना कम होती है। अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ संतुलित होकर अपना स्त्राव सही करती है। शरीर में फैले विषैले पदार्थ बाहर निकलते है। हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है।
  • ऊँकार की ध्वनि से उत्पन्न कम्पन हमारे शरीर के स्नायुतन्त्र को संतुलित करते है। इनमें उत्पन्न विकार का शमन करते है। इससे उत्पन्न ध्वनि शरीर को व्यवस्थित करती है। शरीर अपने निज स्वभाव को प्राप्त होता है। असंतुलन,विकृति व अराजकता का नाश होता है। हमारे शरीर के प्रत्येक अणु को शान्ति मिलती है। उन्हें ठीक होने में मदद मिलती है।
  • श्री श्री रविशंकर ने कहा है कि प्रतिदिन आधा घंटा तक ऊँ का उच्चारण करने से कैंसर तक ठीक हो जाता है। उनका एक अनुयायी रोज गुंजन कर अपना कैंसर ठीक कर चुका है। उादहरण स्वरूप वह बताते है कि एक जर्मन व्यक्ति जो कि ऊँ से अनभिज्ञ था। लेकिन उसने अपनी बीमारी का सामना करने प्रातः उठ कर ऊँ के समान ध्वनि आधे घंटे तक करता था। वह इससे ठीक हो गया।
➡ त्रिदेव और त्रेलोक्य का प्रतीक :
  • ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का प्रतीक है।
➡ बीमारीयों को दूर भगाएँ : 
  • तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है। देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है। उदाहरण के तौर पर कं, खं, गं, घं आदि। इसी तरह श्रीं, क्लीं, ह्रीं, हूं, फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों में गिने जाते हैं।
  • सभी मंत्रों का उच्चारण जीभ, होंठ, तालू, दाँत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है।
➡ ॐ उच्चारण करने की विधि : 
  1. प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। ॐ जप माला से भी कर सकते हैं। 
➡ इसके चमत्कारी लाभ : 
  • इससे शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलेगी। दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा। इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं। काम करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसका उच्चारण करने वाला और इसे सुनने वाला दोनों ही लाभांवित होते हैं। इसके उच्चारण में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है।
➡ शरीर में आवेगों का उतार-चढ़ाव :
  • प्रिय या अप्रिय शब्दों की ध्वनि से श्रोता और वक्ता दोनों हर्ष, विषाद, क्रोध, घृणा, भय तथा कामेच्छा के आवेगों को महसूस करते हैं। अप्रिय शब्दों से निकलने वाली ध्वनि से मस्तिष्क में उत्पन्न काम, क्रोध, मोह, भय लोभ आदि की भावना से दिल की धड़कन तेज हो जाती है जिससे रक्त में 'टॉक्सिक' पदार्थ पैदा होने लगते हैं। इसी तरह प्रिय और मंगलमय शब्दों की ध्वनि मस्तिष्क, हृदय और रक्त पर अमृत की तरह आल्हादकारी रसायन की वर्षा करती है।

5 सालों में करना है एक बार इस्तेमाल और आप हो जायेंगे सभी बीमारियों से मुक्त,पोस्ट को शेयर करना ना भूले

5 सालों में करना है एक बार इस्तेमाल और आप हो जायेंगे सभी बीमारियों से मुक्त,पोस्ट को शेयर करना ना भूले

दुनिया में बहुत कम लोग है जो स्वास्थ्य जीवन (Healthy life) जी रहे है बाकी लोगो के लिए निरोगी जीवन (Disease free life) एक सपना बन कर रह गया है | यह जो अस्वस्थ जीवन हम जी रहे है यह प्रदूषित वातावरण और खान पान की खराब आदतों का नतीजा है | आज कल बचे से लेकर बूढ़े तक हर कोई दवाईयों के सहारे जी रहा है | बाजारू दवाईयां स्वस्थ के लिए कितनी नुकसानदायक है यह बताने की आवश्कता नहीं है |  दुनिया में कुछ ऐसे भी घरेलू नुस्खे (Home remedies) मौजूद है जो आपके शरीर को बीमारियों से रक्षा करने के लिए ढाल का काम करते है | ऐसे ही एक घरेलू नुस्खे की बात हम कर रहे है | आज इस आर्टिकल में हम एक घरेलू नुस्खे की रेसिपी शेयर करने जा रहे है जो आपके शरीर को कई बीमारियों से बचा कर रखे गा | यह घरेलू नुस्खा आपके शरीर को viruses free रखे गा | यह नुस्खा आपको कई बीमारियों से छुटकारा दिलाएगा जैसे के :- atherosclerosis, lung diseases , हाई ब्लडप्रेशर और कई और बीमारियाँ |
आप सोच रहे होगे के यह घरेलू नुस्खा बाकी नुस्खों से अलग कैसे है ?इस घरेलू नुस्खे की ख़ास बात यह है वे नुस्खा आपको रोजाना इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है | इस नुस्खे में बताएं जाने वाले मिश्रण को 5 सालों में सिर्फ एक बार सेवन करने की आवश्कता है | पांच सालों में सिर्फ एक बार सेवन आपको बीमारियों से मुक्त कर देगा (Disease free)
समग्री :-
  • 350 ग्राम लहसुन
  • 200 ml 96% alcohol
विधि :-
लहसुन को छील कर धो लें और alcohol मिक्स करे और कांच की बोतल में डाल  कर  10 दिनों के लिए रखे |
  • 10 दिनों के बाद इस मिश्रण को पुन लें और पूना हुआ मिश्रण 2 दिन के लिए फ्रिज में रख दें |
12 दिनों के बाद यह मिश्रण सेवन करने के लिए तयार है | इसकी बुँदे पानी में डाल कर सेवन करें
पहले दिन 1 बूंद नाश्ते से पहले , 2 बूंद दोपहर के खाने से पहले और 3 बूंद रात के खाने से पहले से शुरू करें |

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